ज़िन्दगी में दो तरह के लोगों से हमेशा सावधान रहिये – पहले वो जो आपकी वो कमी बताते हैं जो आपमें है ही नहीं और दुसरे वो जो आपकी वो ख़ूबी बताते हैं जो आपमें है ही नहीं | हमारी उपलब्धियों में दूसरों का भी योगदान होता है, समंदर में पानी अपार है पर वो भी नदियों का उधार होता है |
एक बार एक राजा अपने सैनिकों के साथ जंगल में शिकार करने गया था | दोपहर का समय था घने जंगल में अपने सैनिकों से न जाने कब वो राजा बिछड़ गया और अपने घोड़े पर चलते हुए अकेला हो गया | उसने अपनी तरफ से इधर-उधर अपने सैनिकों को ढूंढने या जंगल से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने की कोशिश की पर उसे कुछ समझ नहीं आया | राजा थक चूका था और उसे बहुत प्यास भी लगने लगी थी | चलते-चलते उसे जंगल में एक लकड़हारा दिखा, राजा उसके पास गया | राजा की वेशभूषा देख लकड़हारा समझ गया की वो राजा जी हैं | लकड़हारे ने राजा को प्रणाम किया और पानी पिलाया और जंगल से वापस निकलने का रास्ता भी बताया | लकड़हारे की मदद से ख़ुश होकर राजा ने उसे कहा – तुम महल आना हम तुम्हें ज़रूर इनाम देंगे | ये कह कर राजा जी वहां से वापस अपने महल की ओर निकल पड़े |
इधर लकड़हारा भी ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर आता है और अपनी पत्नी को पूरी बात बताता है | वो कहता है कि – अब हमारी किस्मत चमकने वाली है! ये भी बताता है की राजा जी ने उसे महल आने को कहाँ है और इनाम देने का भी वादा किया है | ये सुन उसकी पत्नी बोलती है – बाद में क्या जी! कल सवेरे ही चले जाइये राजा जी है बाद में कहीं भुल गए तो ! लकड़हारे को भी बात सहीं लगती है तो वो अगले दिन सुबह ही राजा जी से मिलने के लिए महल जाने को तैयार हो जाता है | कुछ समय सफ़र करने के बाद वो महल पहुँचता है और महल के दरवाज़े पे खड़े सैनिक से कहता है की उसे राजा जी ने बुलाया है कल वो उसे जंगल में मिले थे | सैनिक यही बात जाकर राजा जी को बताता है, राजा को पिछले दिन की जंगल वाली सारी घटना याद आ जाती है और वो लकड़हारे को अन्दर भेजने को कहते है | राजा जी के सामने आकर लकड़हारा उन्हें प्रणाम करता है, राजा जी उसे पहचान लेते है | लकड़हारा , राजा को अपनी तंग हाल स्थिति बताता है और मदद मांगता है | राजा जी तो उसकी मदद करना ही चाहते थे, उन्होंने कुछ देर विचार किया और फिर उसे एक बहुत ही बडे चन्दन के बगीचे पे लेकर गए और लकड़हारे से कहाँ – आज से बगीचा तुम्हारा है तुम जो चाहो कर सकते हो अब तुम ही इसके मालिक हो |
लकड़हारे को वो बागीचा दिखा कर राजा जी चले गए और अब लकड़हारे को भी नई ज़िम्मेदारी मिल गई थी | वो खुश तो था लेकिन था तो वो लकड़हारा ही उसे तो जंगल की लकड़ी को काट कर या कोयला बना कर बेचना ही आता था | तो उसने वही करना शुरू कर दिया उसने चन्दन की लकड़ियों को काट-काट कर कोयला बना कर बेचना शुरू कर दिया | ऐसे करते हुए कुछ वक़्त बीत गया और वो लकड़हारा चन्दन के बागीचे से लकड़ियाँ काट-काट कर कोयला बना कर बेचता रहा | एक दिन राजा जी को उस लकड़हारे और चन्दन के बाग़ की याद आई तो उन्होंने बागीचे में जाकर लकड़हारे और बागीचे का हाल देखने का सोचा | राजा ने सोचा था की वो बागीचा और अच्छा, हरा-भरा हो गया होगा और ख़ूबसूरत हो गया होगा, लेकिन जब राजा वहां पहुंचे तो उन्होंने उस बागीचे का जो हाल देखा उनके पैरों तले ज़मीन सरक गई | लकड़हारा राजा को देख कर बहुत खुश हुआ और उन्हें धन्यवाद करने लगा क्यूंकि अब उसकी और उसके परिवार की हालत पहले से बेहतर हो गई थी | ये सब हाल देखने के बाद राजा ने उस लकड़हारे को बागीचे के चन्दन की लकड़ी का एक छोटा सा टुकड़ा दिया और कहा इस लकड़ी को ऐसे ही बाज़ार में बेच कर आओं | लकड़हारा निकल गया, जब वो बाज़ार पहुंचा और उस लकड़ी को बेचा तो उसे कोयले से कहीं ज़्यादा दाम मिले उस लकड़ी के टुकड़े के, उस वक़्त लकड़हारा समझ गया की उससे कितनी बड़ी गलती हो गई थी | वो वापस आया राजा के पास और उनके पैरों में गिर कर माफ़ी मांगने लगा और कहाँ – मुझे माफ़ कर दीजिये राजा जी , आपने मुझे कितनी कीमती लकड़ी दी थी और मैंने इसका क्या कर दिया कितना नुकसान कर दिया मैंने अपनी मुर्खता के कारण |
उस दिन लकड़हारे और उसके परिवार को समझ आया की उन्हें कितनी कीमती चीज़ मिली थी, उससे वो अपना जीवन और ज़्यादा बेहतर कर सकते थे लेकिन अपनी नासमझी में सब ख़राब कर दिया उन लोगों ने | वो कहते है न – अब पछतावत होत का जब चिड़िया चुग गई खेत !!
इस कहानी से अगर हम राजा, लकड़हारे और चन्दन की लकड़ी को हटा कर अपने जीवन के किसी पहलु से जोड़ कर कल्पना करें तो हमारे साथ भी यही होता है की कई बार हम अपने जीवन में सहीं समय, रिश्तों या लोगों के महत्व को समय रहते नहीं समझ पाते है, जब वो बीत जाता है, रिश्ते हमसे दूर हो जाते है या नष्ट हो जाते है तब हमे उसकी एहमियत समझ आती हैं | इन उदाहरणों के साथ हमारा स्वास्थ्य या शरीर भी आता है ! बहुत नसीब से हमे मानव शरीर मिलता है लेकिन बहुत से लोग अपनी बुरी आदतों, खान-पान, आदि के कारण अपने ही शरीर को अन्दर ही अन्दर जला कर कोयला कर देते है | हम सब जानते है की ये शरीर हमे दुबारा नहीं मिलेगा लेकिन फिर भी इसे स्वस्थ और निरोगी रखने के लिए हमें जो काम करने चाहिए वो करने के लिए हम ज़्यादा ध्यान नहीं देते और मुर्खता करने लग जाते है | जबकि अपने आप को स्वस्थ्य और निरोगी रख कर हम जीवन में बहुत कुछ हासिल कर सकते है |
हम आशा करते है की इस छोटी सी कहानी से आपको भी अपने जीवन में समय रहते महत्वपूर्ण चीज़ों का महत्व समझ आ जाये और आपसे उस लकड़हारे की तरह कोई ग़लती न हो |
Nature can change the Future | स्वभाव से भविष्य बदल सकता है | Swaabhav Se Bhavishy Badal Sakta Hai2 thoughts on “”
Very nice concept and very well explained 🙏
Thanks