आज भी कितना मुश्किल है एक औरत के लिए अपने घर से बाहर निकल कर काम करना और आप को सहीं साबित करना | आज भी हमारे समाज में लोगों की मानसिकता ऐसी है की अगर कोई औरत बाहर जाकर ऑफिस में, या कहीं भी काम करती है, तो सबसे पहले उसे लोगों की उस नज़र का शिकार बनना पड़ता है की वो दूसरे मर्दों के लिए अवेलेबल है, या फिर उन मर्दों से दब कर काम करें | अगर कोई औरत सच में काबिल है, अपने काम में अच्छी है, सहीं को सहीं और ग़लत को ग़लत कहती है, तो ये बात भी समाज में लोगों से बर्दाश्त नहीं होती | ऐसी औरतों के पीछे हाथ धो कर पड़े रहते है | हर एक इन्सान इस फ़िराक में रहता है की कहीं उससे कोई गलती हो और उस औरत को नीचा दिखने का मौका मिले, उन्हें पता नहीं क्या संतुष्टि मिलती है लोगों को ऐसी सोच रख कर | क्यों हमारे समाज या इस समाज के पुरष प्रधान सोच वाले लोग इस बात को समझ नहीं पाते की एक लड़की एक औरत उनसे ज्यादा काबिल और सहीं हो सकती है |
आज इसी बात पर एक लड़की की सच्ची कहानी – बिलकुल वैसे ही जैसे उसने मुझे बताया
मैंने 1983 में एक बहुत ही मद्यम वर्गीय परिवार में जन्म लिया | उस वक़्त मेरे पिता बैंक में नौकरी करते थे और मेरी माँ घर संभालती थी , मेरा एक बड़ा भाई भी है जो मुझसे ५ साल बड़ा है | हमारे माँ-पिता जी दोनों का ही बहुत बड़ा परिवार है | किसी भी रिश्ते की कोई कमी नहीं थी, हर रिश्ते का आनंद मिला हमे बचपन में | साथ ही कुछ अजीब अनुभव भी हुए जो किसी भी बच्चे को कभी नहीं होने चाहिए- ऐसे अनुभव | दोनों परिवार में पूरी तरह तो नहीं लेकिन लड़का-लड़की में फर्क करने वाली मानसिकता भी थी | मैंने बचपन में अपने परिवार वालों के मुह से अक्सर अपने लिए कम पढ़ने और जल्दी शादी करवा देने वाली बातें सुनी थी जो मुझे बहुत ही अजीब लगती थी पता नहीं क्यूँ ? शायद इसलिए क्यूंकि मेरी माँ ने अपनी ज़िन्दगी में बहुत समझोते किये थे और कहीं न कहीं वो नहीं चाहती थी की मैं कोई समझौते करूँ | लेकिन हाँ मेरी माँ ये भी चाहती थी की मुझे घर का सारा काम भी आना चाहिए | मेरी माँ की इच्छा थी की मैं बड़ी होकर सिर्फ चूल्हा-चौका न संभालूं बल्कि अपने पैरों में खडी होऊं, क्या करूँ या क्या बनू इसका जोर कभी नहीं डाला पर हाँ, वो चाहती थी की मैंने कुछ करूँ अपनी ज़िन्दगी में | पिता जी के कुछ ज्यादा अरमान नहीं थी मुझे लेकर उनकी नज़र में मुझे थोडा बहुत पढ़ा लिखा कर शादी करवाना ही था | मेरे भाई को लेकर बहुत अरमान थे उनके |
इन्ही सारी बातों, सोच और दुनिया के बदलावों के बीच हम अपनी ज़िन्दगी जी रहे थे और बड़े हो रहे थे | लेकिन धीरे-धीरे मुझे इन बातों और इस सोच से घुटन होने लगी | इसी वजह से मैं थोड़ी तेज़ हो गई, जो बात मुझे गलत लगती थी मैंने साफ़-साफ़ बोलना शुरु कर दिया, लेकिन वही सोच मेरे आगे आ जाती की लड़कियों को ज्यादा बोलने या जवाब देने की इजाज़त नहीं होती तो हर कोई मुझे डांटता और मुझे सुधरने के लिए बोलता | सहीं को सहीं और ग़लत को ग़लत बोलना, शायद यही मेरी गलती है | ऐसे ही करते–करते मैंने दसवीं पास की, मेरे पिता मुझे उसके बाद आर्ट्स लेकर पड़ने की बात कहते थे, लेकिन मेरा मन साइंस लेकर पढने का था | मेरी माँ ने इसमें मुझे सपोर्ट किया और मैंने उनके ही सपोर्ट से अपनी एम.एस.सी. (बायोटेक्नोलॉजी) तक की पढाई पूरी की | मुझे एम.एस.सी. (बायोटेक्नोलॉजी) करने के लिए लोन लेना पड़ा क्यूंकि मेरे पिता जी ने साफ़ बोल दिया की मुझे इतनी महंगी पढाई करवाने कलिए उनके पास पैसे नहीं थे | मैंने लोन लेकर पढाई की इसीलिए अब मेरे लिए बहुत ज़रूरी था नौकरी करना |
मैंने जून 2006 में अपनी पढाई पूरी की और अब तक के अपने जीवन के अनुभव से काफ़ी intovert हो गई थी, दुनिया और लोगों के सामने कुछ बोलने में झिझक होती थी लेकिन फिर भी बहुत सी बातें सीखी जिसमे सबसे महत्वपूर्ण बात थी की कभी किसी भी ग़लत बात पे समझोता नहीं करना | ऐसे ही कोशिश करते हुए मुझे एक महानगर में एक छोटी सी नौकरी मिल गई, सैलरी बहुत ही कम थी, इसीलिए मेरे घर में सभी मेरे उस नौकरी के लिए उस महानगर में जाने के फैसले को एक्सेप्ट नहीं कर रहे थे | यहाँ भी मेरी माँ ने मेरा साथ दिया मैं वह महानगर चली गई वहाँ हमारे कुछ रिश्तेदार थे, तो पिता जी भी मुश्किल से माने पर मान गए |
महानगर में जाने के बाद बहुत से अनुभव हुए, जो काम कभी अकेले करने से डर लगता था इतनी भीड़ में कभी अकेले रही नही थी, ऐसी जगह में अकेले रहना पड़ रहा था, लेकिन मैंने ये चैलेंज अपने आप को दिया था | इसी कोशिश में उस महानगर में मुझे एक महीने के अन्दर मेरी अपनी काबिलियत पे एक बड़ी कंपनी में अच्छी सैलरी में नौकरी मिल गई, मैं बहुत खुश थी | मुझे लगा जैसे मैंने ज़िन्दगी में सबकुछ हासिल कर लिया अब और कुछ नहीं बचा करने को, लेकिन – तब मुझे ये कहाँ पता था की अब तो असली स्ट्रगल शुरु हुआ था | अपने घर परिवार में जिस सोच से परेशान हो कर मैं बाहर निकली उससे भी बेकार और गन्दी सोच वाले लोगों से मेरा सामना हुआ | ऐसे लोग जो ये सोचते है की और लड़की को ऑफिस में दूसरे लड़कों का मन लगा रहे इसलिये नौकरी दी जाती है | इस माहौल में अगर गलती से कोई लड़की सच में अच्छा काम करने लगे और दुसरों के लिए अवेलेबल नहीं है तो लग जाते है सब उसे नीचा दिखाने और उसकी छोटी-छोटी गलतियाँ ढूंढ़ने | एक लड़की को उसे नीचा दिखने में एक दूसरी औरत /लड़की बहुत बड़ी भूमिका निभाती है | लड़कों को ये बर्दाश्त नहीं होता की बिना उनकी मदद के या उनसे दबे बिना एक लड़की आगे कैसे बढ़ सकती है, और औरतों को ये बर्दाश्त नहीं होता की एक दूसरी लड़की उनसे बेहतर कैसे हो सकती है |
ऐसी मानसिकता हर एक संगठन में है चाहे वो प्राइवेट ऑफिस हो या सरकारी | बल्कि सरकारी ऑफिस में तो स्थिति इतनी ज्यादा ख़राब है की कुछ बोला ही नहीं जा सकता | अभी मैं एक सरकारी ऑफिस में काम कर रही हूँ | और यकीन मानिये ऐसे –ऐसे भेडियों से पाला पड़ा है मेरा आदमियों की ऐसी-ऐसी प्रजातियाँ देखी है मैंने काम की जगह में औरतों को कैसे अलग-अलग स्तर पर रख कर ये समाज मज़े लेता है | सबसे पहले तो सीधे लड़की जो बाहर नौकरी करने निकली वो ‘सबकी है’, इस मानसिकता से उसे देखा जाता है | अगर नहीं मिली तो लोग परेशान करना शुरु कर देते है | फिर भी नहीं झुकी तो उसके बारे में झूठ बोल कर उसकी इमेज ख़राब करने में लग जाते है | और कुछ लोग तो उसकी अपनी मेहनत का श्रेय खुद लेते है और उसे थोडा सा शाबाशी देकर ये जताने की कोशिश करते है की बस उन जैसे लोगों की वजह से उस लड़की की नौकरी चल रही है | सच में एक औरत (जो खुद या तो टाइम पास करने के लिए नौकरी करती है या अपने घर की जिम्मेदारियों से भागने के लिए वही) दूसरी औरत (जो अपने पैरों पे खड़े होने, कुछ कर दिखने के लिए अपना नाम बनाने के लिए काम करती है) को परेशान और बर्बाद करने में उन भेड़ियों के साथ मिल कर बहुत ही अहम् भूमिका निभाती है |
इस समाज में औरतों को लेकर बहुत से महिला कल्याण कार्य किये जाते है, सच में अगर किसी महिला का कल्याण करना है न तो उससे उसकी मेहनत की, उसके हिस्से की इज्जत उसे दे दो और कुछ नहीं चाहिए एक लड़की को एक महिला को | जिस दिन ये समाज इस बात को समझ जायेगा सच में एक औरत / लड़की का कल्याण होना शुरु हो जायेगा |
Aadhunik Yug Mein Mahilaon Ki Sthiti, Jara Sochiye | आधुनिक युग में महिलाओं की स्थिति, जरा सोचिये !!4 thoughts on “”
Really this is the actual truth
I can say as I too face such issues at my work place.
yes
mujhe bhi jo log badi badi bate karte hain, bade bade nare lagwate hain. sab dikhava mehsus hota hai.
insan apne side se sawdhanipurvak chal rha hai lekin koi wrong side se aakar thokar mar de to kya karega insan.
true