मानव समाज पे इस समय बहुत बड़ी विपत्ति आ पड़ी है | हम सब जानते है की पिछले 6 महीने में हम सबने बहुत से भयाव्ह मंज़र देखे है बहुत कुछ सहन किया है और अभी भी कर ही रहे है, और आगे क्या होने वाला है? हमे नहीं पता | इस वक़्त हमारे लिए सबसे बड़े मसीहा है डॉक्टर्स, इस वक़्त क्या किसी भी समय सेहत से जुडी समस्या में डॉक्टर्स ही हमारे मसीहा है, पर हाँ अभी कोरोना काल में उनके द्वारा किये जा रहे कार्य और सेवा का कोई मोल नहीं है | आज के इस लेख में मै आप सबसे कुछ अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करना चाहूँगा (ये सभी अनुभव इस कोरोना काल के है) और ये भी चाहूँगा की आप ही तय करें की कौन और क्या सहीं है और क्या ग़लत है |
पहला अनुभव – हमारे रिश्तेदार जो पहले से ही कैंसर से पीड़ित थी, उनकी तबियत ज्यादा ख़राब होने पर उन्हें एक निजी-अस्पताल में भर्ती करने ले कर गए, अस्पताल पहुँचते ही वो बेहोश हो गई, हमे कुछ समझ नहीं आया डॉक्टर्स से हर मुमकिन कोशिश (CPR) कर उनकी सांस फिर से शुरू की लेकिन उन्हें होश नहीं था | उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी तो डॉक्टर्स ने उन्ही हालत को देखते हुए उन्हें ICU में रखा और वेंटीलेटर में डाल दिया | हम भी आस लगा कर ICU के बहार बैठे रहे | तीसरे दिन उनको थोडा होश आया, उन्होंने आँखें खोली कुछ बोल तो नहीं पाई पर इशारा समझ रही थी | हमारी आस और बढ़ गई | लेकिन उनकी हालत तो पहले से ही कैंसर के कारण ख़राब ही थी जो हमे पहले ही पता था फिर भी उम्मीद पे दुनिया कायम है | उसी उम्मीद के सहारे आस लगा कर बैठे रहे की शायद……..! उस उम्मीद के साथ हममे से कोई न कोई २४ घंटे ICU के बाहर बैठा रहता| हमे दिन में सिर्फ दो बार उन्हें देखने मिलता था | अन्दर से सिर्फ पर्ची आती थी जिसमे टेस्ट, दवा लिखे होते थे हमे वो लाकर देना होता था और फिर वही बहार उम्मीद के साथ बैठ जाते थे | दिन में एक बार डॉक्टर बता देते थे उनकी स्थिति, क्यूंकि वो खुद तो कुछ बोलने या बताने की हालत में थी नहीं | लेकिन डॉक्टर्स जितना हमे बता रहे थे उनकी हालत में कुछ सुधार नहीं हो रहा था बल्कि ५ दिन बीत जाने के बाद भी उनकी हालत बिगडती दिख रही थी तो परिवार वालों ने ही फैसला कर उन्हें वेंटीलेटर से हटवा दिया | उसके बाद 6-7 घन्टों के बाद वो हम सबको अकेला छोड़ कर दुनिया से चली गई | एक ऐसी कमी दे कर चली गई जिससे कभी कोई पूरा नहीं कर सकता | इस पुरे बीते 6 दिन में हमने पैसों का हिसाब तो किया ही नहीं क्यूंकि हमारे पास हेल्थ इन्शुरन्स था तो ईलाज कैशलेस में चल रहा था, पर अंत में पता चला कुल 275000 का बिल बना था और हमने उनकी जान भी गँवा दी |
दूसरा अनुभव – हमारे एक और रिश्तेदार की तबियत अचानक ख़राब हुई | उन्हें पहले से डायबिटीज और BP की तकलीफ थी साथ ही लंग्स में भी पहले भी 2-3 बार इन्फेक्शन हुआ था | अभी फिर उन्हें सांस लेने में तकलीफ महसूस होने लगी | कोरोना काल को देखते हुए हम सब डर गए लेकिन ईलाज करवाना भी जरुरी था तो उन्हें एक प्राइवेट क्लिनिक में लेकर गए जहाँ पहले से ही नियमित रूप से जाते थे, लेकिन वहां पर डॉक्टर ने उन्हें हाथ तक नहीं लगाया और बिना चेक-अप किये बस थोड़ी बहुत दवाई लिख कर भेज दिया | लेकिन उनकी हालत ठीक नहीं थी तो हमने खुद ही उनका X-ray और ब्लड टेस्ट करवा लिया | रिपोर्ट चिंता जनक आई तो सरकारी अस्पताल (कहते हैं यह भारत का सबसे बड़ा शासकीय चिकित्सा संसथान है ) ले कर गए वहां पर उनका कोरोना टेस्ट करवाया, लेकिन डॉक्टर्स के हिसाब से स्थिति उतनी ख़राब नहीं होने के कारण होने सैंपल लेकर वापस घर भेज दिया गया | अगले दिन सुबह तक उनकी हालत में कोई सुधार नहीं आया तो दोपहर में उन्हें अपनी जान-पहचान की मदद से सरकारी अस्पताल में कोरोना सस्पेक्ट वार्ड में एडमिट करवाया | क्यूंकि उन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत थी और उसके लिए अस्पताल में रखना जरुरी था | रात तक उनकी कोरोना की रिपोर्ट आई जो की नेगेटिव थी, हम सबने थोड़ी चैन की सांस ली, पर उनका ईलाज तो करवाना ही था | कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद उन्हें pulmonology dept में HDU ward में भर्ती कर ईलाज करना तय हुआ | रात में ही उन्हें HDU ward में शिफ्ट कर दिया गया | सहीं तरीके से ईलाज शुरू होने में पूरा दिन लग गया, हम यहाँ भी HUD ward के बाहर उम्मीद लगा कर बैठे थे | उस सरकारी अस्पताल में ईलाज चल रहा था पर ईलाज के अलावा और भी बहुत सारे काम करने होते है हॉस्पिटल में उसके लिए मरीज़ के अलावा हर रोज़ तीन attendent चाहिए क्यूंकि हर काम कलिए आपको अलग-अलग बिल्डिंग में जाना पड़ता है | साथ ही मरीज़ के दैनिक कार्यों से निवृत्त भी attendent को ही करवाना पड़ता है क्यूंकि वहां के जो ward बॉय या आया बाई है वो सिर्फ ward के डॉक्टर्स के बोले अनुसार काम करते है |
इन सारी समस्याओं को हमने एक हद तक नजरंदाज किया क्यूंकि मरीज़ का ईलाज हमारे लिए प्राथमिकता था | ऐसे ५ दिन तक उनका सांस की तकलीफ का ईलाज किया गया और उसमे उन्हें राहत भी मिली, लेकिन सांस लेने में तकलीफ के अलवा जो दूसरी समस्या थी, डायबिटीज, BP और किडनी की, उसका ईलाज वो नहीं कर रहे थे और उसमे कोई राहत नहीं मिल रही थी, फिर भी pulmonology dept वालों ने ये कह कर उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया और हमे बोला की दूसरी समस्याओं केलिए endocrinology & urology dept की OPD में लेजाकर दिखा लें | हमारे कई बार बोलने के बाद भी कि, एडमिट रख कर उनका दूसरी समस्याओं का भी ईलाज करले वो बोलने लगे की दुसरे dept वाले डॉक्टर्स pulmonology dept में आकर ईलाज नहीं करना चाहते क्यूंकि यहाँ कोरोना का ख़तरा है | इसलिए हमे मज़बूरी में उन्हें डिस्चार्ज करवा कर घर ले जाना पड़ा | 3-4 दिन के बाद घर में उन्हें फिरसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी और इस बार पिछली बार से ज़्यादा स्थिति ख़राब हो गई |
इस बार हम उन्हें निजी-अस्पताल में लेकर गए | कोरोना का खतरा अब भी था इसलिए वहां भी उनका टेस्ट हुआ इस बार उनका कोरोना टेस्ट positive आया | इसके बाद तो जैसे हमारे जीवन में भूचाल ही आ गया, क्यूंकि हम सब भी उनके कांटेक्ट में थे इसलिए हमे quarantine होना पड़ा और मरीज़ अस्पताल में अकेला उनको न देख सकते न मिल सकते | 24 घंटे बहुत ही चिंता में बीते फिर डॉक्टर्स से बात करके जैसे-तैसे उनके पास फ़ोन पहुँचाया गया तब कहीं जा कर उनसे बात हुई तो मन को तसल्ली हुई | इसके बाद 15 दिन तक बस फ़ोन पे सब हाल-चाल पता चलता था मरीज से और डॉक्टर से, मिलने या देखने जाने की तो बात ही ख़तम होगी थी | 3-4 बार उनका डायलिसिस करना पड़ा, भगवान की कृपा से धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार हुआ | आपको बता दूँ की उनके पास हेल्थ इन्शुरन्स था तो हॉस्पिटल को दवाई या जाँच के पैसे केलिए हमारी जरुरत नहीं पड़ी | फिर 17वें दिन डॉक्टर ने उन्हें घर ले कर जाने की परमिशन दे दी | उनको डिस्चार्ज करते वक़्त हमे हॉस्पिटल वालों ने बिल दिया 632014 का बिल दिया जिसमे से 303609 बिल दवाई का था | हमारे पास कुछ कहने को नहीं था उस वक़्त, क्यूंकि हमारी हेल्थ इन्शुरन्स पालिसी भी इतने की नहीं है | पर फिर भी ये बिल justify नहीं हो रहा था | इन्शुरन्स कंपनी ने भी हॉस्पिटल द्वारा भेजा गया क्लेम रिजेक्ट कर दिया है | मरीज़ की जान तो बाख गई पर पता नहीं 632014 का पेमेंट क्या बेच कर या कहाँ से क़र्ज़ लेकर करेंगे |
तीसरा अनुभव – हमारे एक दूर के रिश्तेदार जो गाँव में रहते थे, वो अपने ही गाँव में रस्ते पे गिर गए और बेहोश हो गये | किसी पहचान वाले ने देखा तो घर वालों को खबर की | उसके बाद उन्हें पास के शहर के प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टर को दिखाया गया | वहां उनका प्राथमिक उपचार किया गया, ब्रेन CT किया गया पता चला सर में clotting हो गई है | 24 घंटे बाद भी उन्हें होश नहीं आया था | वहां उनका ईलाज संभव नहीं था तो डॉक्टर्स ने उन्हें सरकारी अस्पताल (जो कि भारत का सबसे बड़ा शासकीय चिकित्सा संसथान है) रेफेर कर दिया | सरकारी अस्पताल लाने के बाद यहाँ १०-१२ घंटे तक उन्हें एक streacher तक नहीं दिया गया, bed देना तो बहुत दूर की बात है | व्हील-चेयर में ही बैठा कर उनकी जांच की गई और वैसे ही उन्हें थोड़े बहुत injection (IV) के द्वारा दिए गए | मरीज़ अभी तक बेहोश ही था | इस बीच कोई डॉक्टर भी उन्हें नहीं देख रहा था junior डॉक्टर्स के सहारे ही पहले के अस्पताल में रिपोर्ट के भरोसे पे ईलाज कर रहे थे | सबसे बड़ी बात कोई भी ईलाज करवने केलिए उनके करीबियों को वहां पर चिल्लाना पड़ता था नहीं तो कोई junior डॉक्टर्स भी उन्हें देखने नहीं आते थे | इसी तरह 2 दिन के बाद उन्हें व्हील-चेयर से streacher में शिफ्ट किया गया पर किसी भी dept में नहीं भेजा गया | ब्रेन इंजुरी थी तो सीधी बात है न्यूरोलॉजी में उनका ईलाज होना था पर उस dept वालों ने उन्हें लेने से माना कर दिया | इस तरह ४ दिन बीत गए न होने होश आया न ही उनका ठीक से कुछ ईलाज हुआ | इसके बाद ५वें दिन सरकारी अस्पताल ने प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल जो कि राज्य शासन के अधीन है भेज दिया ये कह कर की सरकारी अस्पताल में bed नहीं है इसलिए ईलाज नहीं कर सकते |
प्रदेश के जो बड़े अस्पताल है वहा लेकर गए तो वहां बोल दिया गया यहाँ ईलाज नहीं हो सकता एक दुसरे सरकारी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल लेकर जाओ | सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में अंततः उन्हें एडमिट किया गया और बताया गया की सर्जरी करनी पड़ेगी | आपको बता दूँ की अभी तक उनको होश बिलकुल नहीं आया था | सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर्स ने क्या किया क्या नहीं ये डिटेल तो नहीं पता पर सर्जरी नहीं हुई वहाँ पर भी उनकी और गाँव में गिरने के 17वें दिन वो अपना भरा पूरा परिवार और हम सबको छोड़ कर दुनिया से चले गए |
अपने जीवन के ये व्यक्तिगत अनुभव आप सब से साझा करने केलिए लिखते वक़्त भी मुझे ये समझ नहीं आ रहा था की इन सबका जिम्मेदार मैं किसे ठहराउं | पहले के दो अनुभव में मरीज़ को ईलाज तो मिला लेकिन उन निजी अस्पताल वालों ने जो बिल थमाया उससे देख कर समझ नहीं आया की क्या बोले| किसी भी मिडिल क्लास आदमी के पास इतना पैसा नहीं होता की वो 6 महीने में इतने बड़े-बड़े बिल का भुगतान कर सके लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं है की उन्हें अच्छे अस्पताल में ईलाज करवाने का हक़ नहीं है |
सरकारी अस्पताल में भी हमे जाने में कोई परहेज़ नहीं है लेकिन वहां पर तो एक इंसान को पूरा ईलाज ही नहीं मिलता है | ऐसे में एक आम इंसान करे तो क्या करे ? आप भी इस बारे में सोचिये और भगवान से ये प्रार्थना है मेरी की सिर्फ कोरोना नहीं किसी भी वजह से किसी को डॉक्टर की ज़रूरत न पड़े नहीं तो या तो पैसे से जाओगे या जान से |
अब आप ही बताइए कि आखिर गलती किसकी ?
Aisa konsa sawal hai jiska jawab har waqt badalta rehta hai | ऐसा कौन सा सवाल है जिसका जवाब हर वक़्त बदलता रहता है2 thoughts on “”
It is a very sad reality of today’s world.
and true, we can’t even understand whose fault is it !!
bahut hi dukhad anubhav hai is lekh me