जहाँ से तुलना की शुरुआत होती है, वहीँ से आनंद और अपनेपन दोनों का अंत हो जाता है | आज आपको एक आदमी की कहानी बताते है – रामशंकर नाम का ये आदमी एक सोसाइटी में वहां रहने वाले लोगों की कार, बाइक वगैरह साफ़ करने का काम करता था | एक दिन रामशंकर उसी सोसाइटी में रहने वाले शर्मा जी के दरवाज़े पे पहुँचता है और उनके घर की घंटी बजता है | दरवाजे की धंटी सुन कर शर्मा जी दरवाज़ा खोलते है, सामने रामशंकर को देखते है वो बोलता है – साहब आपसे दो मिनट काम था | शर्मा जी उसे बोलते है – क्या हुआ रामशंकर, तुम्हारा कुछ पगार वगैरह बचा हुआ है क्या ? तो रामशंकर बोलता है – नहीं-नहीं साहब वो तो कब की मिल गई, मैं तो आपके लिए मिठाई ले कर आया था, वो क्या है न मेरा बेटा 10वीं में पास हो गया | ये सुन कर शर्मा जी खुश होते है और रामशंकर को अन्दर बुला कर अपने घर में बैठने को कहते है | रामशंकर मिठाई का डब्बा उनके सामने रख देता है उसमे से मिठाई लेते हुए शर्मा जी उससे पूछते है – कितने प्रतिशत आये तुम्हारे बेटे के १०वीं में ? तो रामशंकर बहुत ख़ुशी और गर्व से बताता है – 62% | ये सुन कर शर्मा जी उसका दिल रखने के लिए बोल देते है – अरे वाह ! ये तो बहुत बढ़िया है | लेकिन मन ही मन सोचते है बताओ ये 62% में इतना खुश हो रहा है की मिठाई बाँट रहा है आजकल तो 90-95% वाले बच्चों के माँ –बाप तो ऐसी शक्लें बना कर घूमते है जैसे उनके बच्चे फ़ैल हो गए हो |
इतने में रामशंकर बोलता है – पता है साहब, मेरे पुरे ख़ानदान में सबसे ज़्यादा पढ़ा लिखा मेरा बेटा ही है | तो शर्मा जी उससे कहते है- अच्छा तभी ये सब मिठाई बाँट रहे हो | तो रामशंकर बोलता है – नहीं साहब ऐसा नहीं है, अगर मेरा सामर्थ होता न तो मैं हर साल मिठाई बांटता, मुझे पता है मेरा बेटा बहुत होशियार नहीं है लेकिन साहब वो कभी फ़ैल नहीं हुआ हर साल पिछले साल से 2-3 % ज़्यादा लेकर ही पास हुआ, तो क्या ये ख़ुशी की बात नहीं है क्या साहब | जिन कम सुख-सुविधाओं में वो पढता है न साहब उसमे वो पास भी हो जाए तो भी मैं बहुत ख़ुश हूँ साहब |ये सब सुन कर शर्मा जी बहुत ख़ुश हुए और उनका दिल भर आया | शर्मा जी वहां से उठ कर अन्दर गए एक लिफ़ाफ़ा लिया उसमे कुछ पैसे डाले और रामशंकर को आवाज़ दे कर पूछा – रामशंकर बेटे का क्या नाम है ? उसने कहा – विशाल | शर्मा जी ने लिफ़ाफे में लिखा – “ प्रिय विशाल बहुत –बहुत शुभकामनाये ! हमेशा ऐसे ही आगे बढ़ो और रामशंकर जैसे आनंदित और संतुष्ट बनना ”| शर्मा जी लिफ़ाफ़ा लाकर रामशंकर को देते है ये देख वो भी बहुत भावविभोर हो जाता है और लिफ़ाफे को देख कर पूछता है – साहब इसमें क्या लिखा है ? शर्मा जी मुस्कुराते हुए उसे कहते है – घर ले जाओ विशाल तुम्हे पढ के बताएगा इसमें क्या लिखा है! आभार व्यक्त करता हुआ रामशंकर तो वहां से चला गया पर शर्मा जी रामशंकर के संतुष्ट और आनंदित चेहरे को भूल ही नहीं पा रहे थे | क्योंकि न जाने कितने दिनों बाद उन्होंने किसी संतुष्ट व्यक्ति को देखा था |
क्या आप अपने काम से खुश हैं ? कही आपको भी तो नहीं लगता कि आप चिड़ियाघर में हैं ?
आजकल हमारे आस-पास या तो हर कोई असंतुष्ट होता है, दुखी होता है, व्यथित होता है, चिंतित होता है या खुद को आभाव में महसूस कर रहा होता है | आज के समय में किसी से पांच मिनट बात करके देखिए या तो विवाद हो जायेगा या वो आदमी आपके सामने अपना रोना लेकर बैठ जायेगा | शर्मा जी को उन माँ-बाप के चेहरे भी याद आ रहे थे जो अपने बच्चों के 90-95% आने का भी उत्सव नहीं मना पाते क्योंकि वो उनकी तुलना दूसरों से कर रहे होते है | जब इंसान का जन्म होता है तो ऊपर वाला उसकी दोनों मुट्ठी बंद करके भेजता है, एक में आनंद और दूसरी में संतुष्टि दे कर भेजता है, लेकिन हम इंसान अपनी ज़िन्दगी को हर मोड़ पर किसी न किसी से तुलना करने के चक्कर में इस संतुष्टि और आनंद को खो देते है | तुलना किस तरह से? – और ज़्यादा पैसे, और बड़ा घर, और बड़ी पोजीशन, और बड़ी गाड़ी, और ज़्यादा परसेंटेज – इस और के चक्कर में हम उस चीज़ों का आनंद लेना ही भूल जाते है जो उस वक़्त हमारे पास होता है, जो हमे मिला है | कभी–कभी तो हम अपने ही परिवार अपने दोस्तों से अपनी ज़िन्दगी की तुलना करने लग जाते है | इस चक्कर में बहुत से अच्छे और प्यारे रिश्ते भी ख़राब कर लेते है|
जो कुछ अभी इस वक़्त हमारे पास है पहले उसका आनंद तो ले लीजिये जनाब – इस उगते और डूबते सूरज की सुन्दरता का आनंद लेने से आपको किसने रोका है ? बारिश में भीगने के कौन से पैसे लगते है ? बाथरूम में नहाते वक़्त गाने में तो कोई कॉम्पीटिशन भी नहीं है!! तो जहाँ से हम आये है जहाँ से हमारी उत्पत्ति हुए है वहां लौट चलिए इस तुलना के खेल से बहुत दूर और ख़ुश रहिए | ये ज़िन्दगी एक ही बार मिली है हमे इसमें जितनी खुशियाँ बटोर सकते है बटोर लीजिये | खुद भी ख़ुश रहिए और अपने आस-पास और अपने परिवार के लोगों को भी खुश रखिये |
Santusht Rahein Khushiyan Zindagi Bhar Sath Nahi Chhodegi | संतुष्ट रहें खुशियाँ जिंदगी भर साथ नहीं छोड़ेगी4 thoughts on “”
Very nice
Thanx
Wakai me bahut khubsurat Kahani hai, Insaan santusht hona sikh le sa hi samsyayen khatam ho jaayegi.
Thanx