मैं “सर्वश्रेष्ट” हूँ ये आत्मविश्वास है परन्तु ‘सिर्फ मैं ही सर्वश्रेष्ट हूँ’ ये अहंकार है | आइये इस बात को एक कहानी से समझते है – ये कहानी है एक गाय और एक शेर की, एक गाँव में एक लकड़हारे के घर एक गाय थी, जो हर रोज़ सुबह चरने के लिए बाहर जंगल के पास तक जाती थी, और शाम होते तक वापस घर पे आ जाती | हर रोज़ यही सिलसिला चल रहा था | एक दिन सुबह गाय चरते-चरते जंगल के थोड़ा ज्यादा अन्दर तक चली गई, वहाँ एक शेर ने उसे देख लिया, गाय ने भी देख लिया की शेर की नज़र उसपे पड़ गई है, और शेर उसकी तरफ़ बढ़ रहा है | शेर से बचने के लिए वो गाय इधर-उधर भागने लगी | गाय आगे-आगे शेर उसके पीछे-पीछे ऐसे ही भागते हुए गाय एक तालाब के पास पहुंची उसने देखा तालाब तो है, पर पानी कम है, जान बचाने के लिए गाय उसके अन्दर चली गई | अन्दर जाने पर समझ आया की असल में वो तो एक दल-दल है | गाय के पीछे-पीछे शेर भी उस दल-दल में आ जाता है | अब शेर और गाय दोनों उस दल-दल में फंसे हुए थे, अब शेर और गाय के बीच दुरी बहुत ही कम है पर शेर कुछ कर नहीं सकता क्यूंकि दल-दल है | दोनों ने बहुत हाथ-पैर मारे वहां से बहार निकलने के लिए लेकिन कुछ नहीं हो रहा था |
कुछ समय बाद दोनों समझ जाते हैं कि उस दल-दल से वो ख़ुद नहीं निकल सकते उन्हें किसी की मदद की ज़रूरत पड़ेगी | फिर वो दोनों शांत हो जाते है, और इधर शाम भी हो चली जाती है | थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद गाय ने शेर से पुछा ‘क्या तुम्हारा कोई मालिक है ? शेर ने कहाँ ‘मेरा कौन मालिक होगा, मैं तो खुद इस जंगल का मालिक हूँ, शेर हूँ मैं शेर तुम्हारी तरह कोई पालतू जानवर थोड़ी ही हूँ, तुम्हे नहीं पता क्या मैं जंगल का राजा हूँ | ये सुन कर गाय हंस दी और कहा क्या फ़ायदा इतनी ताकत का देखो, आज तुम कैसी स्थिति में फंस गए हो | इस पर शेर गुस्से में बोलता है तो तुम जो इतनी बड़ी-बड़ी बात कर रही हो, तुम भी तो मेरी ही तरह इस स्थिति में फंसी हुई हो, इस पर गाय बोलती है, नहीं ! तुम्हारी और मेरी स्थिति में फर्क है, देखना जब शाम तक मैं घर नहीं पहुंचूंगी तो मेरा मालिक मुझे ढूंढते हुए आएगा और मुझे यहाँ से बचा के ले जायेगा | ये सुन कर शेर ने कुछ नहीं कहा, पर थोड़ी देर बाद बिल्कुल वैसा ही हुआ जैसा गाय ने कहा था | गाय का मालिक उसे ढूंढ़ता हुआ वहाँ आया और जैसे-तैसे गाय को उस दल-दल से बाहर निकाला | गाय को निकालने के बाद गाय और उसका मालिक दोनों एक-दुसरे को कृतज्ञता से देखते है और वहां से जाने लगते है | दोनों के मन में विचार आता है की शेर को भी बाहर निकलना चाहिए या नहीं? लेकिन शेर को निकलने से उन्हें अपनी खुद की जान ख़तरे में नज़र आती है | तो वो दोनों शेर को वहां उसी हालत में छोड़ कर वापस अपने घर को चले जाते है, और शेर की वहां उसी दल-दल में जान चली जाती है |
इस कहानी से हमे ये समझना चाहिए की शेर भले ही बहुत ताकतवर था, और जंगल का मालिक था लेकिन एक समय आता है जब वो भी बेबस हो जाता है लेकिन उस हालत में भी वो अपना सर्वश्रेष्ट होने का अहंकार त्याग नहीं पाता | इस कहानी में वो जो मनुष्य (मालिक) गाय को बचाने आता है वो ‘इश्वर’ का प्रतिक है | जो दल-दल है वो इस संसार का प्रतिक है, और ये जो संघर्ष चल रहा था, वो हमारे अस्तित्व को बचाने का संघर्ष था | गाय एक पवित्र-शांत मन का और शेर एक अहंकारी मन का प्रतिक है |
हम ये मानते है की हम अपना सब काम खुद कर सकते है, ये आत्मविश्वास है लेकिन हमारा ये सोचना की हमे कभी किसी की जरुरत नहीं पड़ेगी ये अहंकार है | यही अहंकार हमे इस संसार रूपी दल-दल में डूबा देता है और अपने अस्तित्व के संघर्ष में कभी जीतने नहीं देता | हमे अपने आप को इस काबिल बनाना चाहिए की हम अपना हर एक काम खुद कर सके लेकिन साथ ही अपने आप को इतना खुले मन और दिमाग का भी बनाइये की ज़रूरत पड़ने पर किसी से मदद मांग सकें, तो आत्मविश्वास रखें अहंकार नहीं |
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घमंड न करना जिन्दगी में | Ghamand Na Karna Zindagi Mein13 thoughts on “”
Awesome writing
hamko to pyar pe ghamand hai ji
facebook me aao Mahak Shree ke naam se hoon
thanx
Bahut badhiya hai
thanx
Nice
thanx
Very nice writing
thanx
Bahut hi prerna dai lekh hai sir ji
thanx
A thought provoking article
Very nice 👍
thanx