वर्तमान समय में CORONA के कारण हमने कुछ नए और अनोखे शब्द भी अपनी ज़िन्दगी से जोड़ लिए है जैसे –quarantine, social distancing, sanitization, आदि और यही सब हमारा new normal बन गया है | इसी तरह हमारे जीवन में corona के भी बहुत पहले से बहुत से अनोखे शब्द जैसे – stress, harassment, rape, acid attack जुड़े थे जो corona की तेज़ी से नहीं फैले लेकिन उससे भी कहीं ज़्यादा ज़िन्दगी बर्बाद कर चुके है | हमारे समाज के कुछ घिनौने सच जो की बहुत समय से New Normal के तौर पे अपनाये जाने लगे है, ऐसे ही बातों के बारे में कुछ उदाहरण के साथ अपना ये लेख लिखना चाह रहा हूँ |
उदाहरण १ :- हम आजकल लड़कियों के साथ होने वाली कितनी सारी हैवानियत की घटनाये सुन रहे है, सुन कर और सोच कर दिल दहल जाता है | लेकिन क्या हम कभी ये सोच पाते है की ऐसी हैवानियत करने वाले हमारे समाज के बीच के ही कुछ लोग होते है | एक परिवार है जहाँ पर एक छोटी सी बच्ची २-३ साल की है जिसके साथ दुष्कर्म करने वाले या दुष्कर्म की कोशिश करने वाले उसके ही परिवार के कुछ उससे थोड़े बड़े लड़के है | वो बच्ची पहले तो कुछ बोल नहीं पाती पर जब उसे समझ आने लगता है कि उसके साथ क्या होता है और ऐसा करने वाले उसके क़रीबी रिश्तेदार ही है उस लड़की पे क्या बीतती होगी ? बड़ी मुश्किल से हिम्मत करके वो लड़की अपने परिवार में अपनी माँ या बहन या किसी बड़ी महिला को बताती है, लेकिन वो ही लोग उसे चुप रहने को कहते है ! क्या बीतती होगी उस लड़की पर ? क्या मानसिकता हो जाती होगी उसकी ? और साथ में क्या मानसिकता होती होगी उस लड़की के साथ दुष्कर्म करने वाले उन लड़कों की उन्हें तो ये सब बार-बार करने की शय मिल जाती है | इसी मानसिकता के साथ वो लोग बड़े होते है | वो लड़की अपने आस-पास कुछ अपनी सहलियों से भी इस तरह की बात सुन कर उसे लगने लगता है की शायद ऐसा ही होता है और यही NORMAL है | ऐसी मानसिकता वाली लड़की क्या परवरिश देगी अपने घर में अपने बच्चों को ? और उसके बच्चे (लड़का) अगर ऐसा कुछ ग़लत काम किसी और लड़की के साथ करेगा तो वो औरत उसे क्या समझाएगी ? क्या उसकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सवाल उसके सामने खड़ा नहीं हो जायेगा की क्या ये NORMAL है ?
उदाहरण २ :- एक आदमी के लिए मेहनत और ईमानदारी से पैसा, नाम और शोहरत कमाना कितना मुश्किल है इस समाज में | कोई भी इंसान जब काम करने के बारे मे सोचता है तो शुरु से ही उसके मन में मक्कारी और बेईमानी नहीं आती है | लेकिन इस समाज में लोग इतने स्वार्थी और काम चोर होते जा रहे है की कोई इंसान मेहनत करता हुआ दीखता है तो वो उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन लगने लगता है | दुश्मन इसलिए क्योंकि अगर एक भी आदमी मेहनत और ईमानदारी से काम करने लगेगा तो कम चोरों और चापलूस लोगों को भी काम करना पड़ेगा इसलिए लोगों ने ये तरीका अपनाया है की “न खुद काम करो न दूसरों को काम करने दो और फिर भी अगर कोई अपना काम अच्छे से करने लगे तो उसको परेशान करो, हर तरह से” | आखिर में वो आदमी अपने भविष्य के लिए, अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए और समाज में जीने के लिए ना चाहते हुए भी समझौता कर लेता है | यहाँ लोग हर काम सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए ही करते है और इसी को सही मान लिया गया है, यही इस समाज का NORMAL बन चूका है |
उदाहरण ३ :- आज के समय में एक लड़की होकर समाज में पुरे आत्मसम्मान के साथ ज़िन्दगी जीना बहुत ही मुश्किल हो गया है | एक मध्यम वर्गीय परिवार की अच्छे सोच वाले माँ-बाप की लड़की पढ-लिख कर कुछ बनने का सपना देखती है | उसे मौके मिलते है, लोगों की मदद और अपने पुरे लगन और मेहनत से पढाई खत्म करके अपने पैरों पे खड़े होने के रास्ते तलाश करती है | एक बहुत अच्छी नौकरी मिल जाती है, उसे लगता है सपना पूरा हो गया लेकिन ज़िन्दगी के कुछ घिनौने सच से सामना होना अभी बाकि था | काम में अच्छी थी अपना हर काम पुरे मेहनत और लगन से करती थी | ऑफिस के कुछ काम चोर, चापलूस और मक्कार लोगों को उसका अच्छा काम करना पसंद नहीं आता, क्योंकि आजकल के समाज में लोगों के दीमाग में तो यही बसा हुआ है की लड़कियों को नौकरी सिर्फ उनकी खूबसूरती को देख कर दी जाती है | और एक लड़की को नौकरी में काम करना आये या न आये लेकिन लोगों को खुश करना और उनका false ego satisfy करना तो आना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है |
सबसे बेकार बात ये है की हमारा समाज आज तक इस सच को स्वीकार नहीं कर पाया है की एक लड़की अपने दम पे, बिना किसी तरह के गंदे समझौते किये अच्छे मुकाम पे पहुँच सकती है | समाज और लोग हमेशा ही एक औरत को ये महसूस करवाना चाहते है की वो हमारे किसी न किसी के रहमोकरम पर ही जिंदा रह सकती है | अपने पैरों पे खड़े होने के लिए भी उसे मर्दों का false ego satisfy करते हुए ही काम करना होगा फिर चाहे वो मर्द उसके साथ काम करता हो, उसके नीचे काम करता हो, या उसका बॉस हो | और अगर कोई लड़की गलत के सामने झुकने से मना कर दे और ग़लत के खिलाफ आवाज उठाये, सच का साथ देते हुए काम करे तो पूरा ऑफिस और पूरा समाज उसे झुकाने और तोड़ने में अपनी पूरी ताकत झोंक देता है | उसके चरित्र पे सवाल उठाना, उसके काम में जान बुझ कर ग़लतियाँ निकालना, बेवजह उसे परेशान करना | ये सब करके उस लड़की को मानसिक रूप से प्रताड़ित करना, जिससे या तो वो नौकरी छोड़ कर चली जाये या इन सब ग़लत बातों में उनका साथ देना शुरु कर दे |
ये सब इसलिए भी होता है क्योंकि कुछ लड़कियां इस तरह के ग़लत काम करती है, चाहे कोई मज़बूरी में ही क्यों न करें, ताकि उनकी नौकरी अच्छी तरह चलती रहे | लेकिन वो लड़कियां जो सिर्फ मेहनत और ईमानदारी से अपनी नौकरी करने आई है, जो सहीं को सहीं और ग़लत को ग़लत बोलना जानती है, वो बेवजह ऐसे चरित्रहीन, चापलूस, मक्कार और स्वार्थी लोगों की वजह से फंस जाती है, उनका नाम ऑफिस और समाज में ख़राब किया जाता है, भले ही वो ग़लत काम करे या न करें | वो क्या है न हमारे समाज में एक और ग़लत धारणा चलती आ रही है – ‘किसी को बदनाम करने के लिए २-४ झूठी अफ़वाहे उड़ा दो उनके बारे specially उनके character के बारे में तो जंगल में आग की तरह फ़ैल जाती है वो बात’ | और जब एक लड़की इन सब से परेशान और हताश होती है तो उसे compromise करने के लिए समझाने वालों में एक औरत भी शामिल होती है, यही इस समाज का NORMAL है |
इन सब ग़लत बातों को NORMAL की category में लाने में सबसे बड़ा हाथ है लोगों का, समाज का, और सरकार का, जब पहली बार कोई इंसान (लड़का या लड़की) कोई ग़लत काम होने की बात बताता है तो क्यूँ उन्हें चुप करवा दिया जाता है ? क्यूँ उनकी समस्या का समाधान सहीं तरीके से नहीं किया जाता है ? हर घर में, ऑफिस में, समाज में और सरकार में ऐसे लोग है जिनके पास, ये पॉवर है! पोजीशन है! अथॉरिटी है! जो पहली ही बार में कुछ भी ग़लत होते हुए देख कर उसे रोक सकते है और ग़लत करने वाले को समझाइश या सज़ा दे सकते है | लेकिन वो लोग सिर्फ मूक दर्शक बन कर समस्या को और जटिल होते हुए देखते रहते है तब तक, जब तक किसी लड़की का निर्भया या हाथरस या एसिड अटैक वाली लड़कियों जैसा हाल नहीं होता | जब तक बात वहां तक नहीं बढ़ जाती जहाँ एक आदमी खुद अपने बीवी बच्चों समेत आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं हो जाता, उनकी समस्या को समस्या नहीं माना जाता उसे तो समाज का NORMAL मान कर सभी को ignore करने और compromise करने की सलाह दी जाती है या दुबक कर घर में बैठ जाने की सलाह दी जाती है |
जो पहले से तुम्हारे पास है, पहले उसका तो सहीं इस्तमाल करना सीख लो, फिर और ज्यादा पाने की मांग करो
Mental harassments के case में भी चाहे वो लड़की के साथ हो या लड़के के साथ लोग इसे भी तब तक seriously नहीं लेते जब तक वो इंसान psychiatrist के पास जाने की condition में नहीं पहुँच जाता या फिर सीधा आत्महत्या नहीं कर लेता | उसके ये दोनों में से एक भी कदम उठाने के बाद वो और उसका परिवार अचानक से देश दुनिया और समाज में कुछ वक़्त तक लोगों के फ्री टाइम का gossip topic बन कर रहते है और फिर उनके साथ हुए सब ग़लत को “आजकल तो हर जगह ऐसा ही है, stress इतना बढ़ गया है, लेकिन ये सब तो आज कल normal है” कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है | लेकिन लोगों को ये भी नहीं भूलना चाहिए की कभी न कभी इन सब के चंगुल में उनका कोई अपना भी फंस सकता है |
तो आइये हम मिलकर बहुत समय से हमारे समाज का हिस्सा बन रहे इन ग़लत NEW NORMAL को हटाने की कोशिश करें | कहीं भी कुछ भी ग़लत होता देख आवाज उठाये अगर किसी और के साथ भी ऐसा होते हुए देखे कि उन्हें बेवजह परेशान किया जा रहा है तो उनका साथ दे, उन्हें हिम्मत दे आप अपने स्तर से उस ग़लत के खिलाफ जो कर सकते है वो करें लेकिन इस ग़लत NEW NORMAL का हिस्सा बनने से अपने आपको रोकें | अपने घरों में बच्चों को बचपन से ही सहीं और ग़लत में फर्क करना और समझना सिखाये |
The New Normal-It is Important to think | द न्यू नार्मल – सोचना जरुरी है |4 thoughts on “”
Right
Thanx
Such a brilliant writing 👍
You pin pointed the very sensitive topic of our society.
Hope people read this article and understand the importance & sensitivity of the issues.
Dhanyawad