डर एक ऐसा शब्द है, जिसका इस दुनिया में ही कोई वजूद नहीं है | लेकिन इसमें इतनी ताकत है कि इस धरती के समस्त जीव को अपने कब्ज़े में कर रखा है , यह हमारा अस्तित्व को प्रभावित करता है | जो कि आशंका और संभावनाओं के बीच पैदा हुआ दुनिया की सबसे शक्तिशाली बच्चा डर की उत्त्पत्ति होती है | जो कि पूरी दुनियां को अपने वश में कर रखा है | यह किसी का भी आत्मविश्वास पर हावी हो जाता है | हमेंशा मनोबल गिराने कि कोशिश करता है, और लगभग कामयाब भी होता है | जैसे ही किसी के भी मन में आत्मविश्वास जागृत होता है डर वहां पर ऐसे जगह बनाता है कि वो कितना भी बड़ा आत्मविश्वासी हो, डर में उसको काबू करने कि ताकत होती है | सपनों को मार – काट कर खाने वाला हत्यारा है | जिसका इस दुनिया में न कोई वजूद है और न ही उसका कोई सबुत, अगर हम एक फिल्म आई थी मुन्ना भाई एम बी बी एस, जो कि कई तथ्यों पर शिक्षित किया था, उसकी भाषा में कहें तो केवल यह हमारे दिमाग का केमिकल लोचा है | सोचों फिर भी ये कितना ताकतवर है | आपमें, मुझमें, और हम सब में ये जो डर है, न वो हमारे मन और दिमाग दोनों जगह कब्ज़ा करके बैठा है | हमारे सपनों या कोई विकट परिस्थितियों में हमारा कमजोर आत्मविश्वास के कारण, उन कार्यों का होना या न होना के संभावनाओं वाली सोच को ही ये डर प्रहार करते हुए हम पर कब्ज़ा करता है | पहले मैंने कहा था कि हमारा अस्तित्व को प्रभावित करता है | कैसे? बहुत सारे मनुष्यों में कुछ बड़ा करने का हुनर और जज्बा होने के बावजूद भविष्य की चिंता के डर से हम अपने सहूलियत वाले समय से दूर नहीं जाना चाहते | जैसा चल रहा है, वैसा चलने देते हैं | जिससे कि सहीं मायने में हम क्या कर सकते थे? वह नहीं कर पाते हैं | ऐसा करने वाला हर इन्सान एक ही सफाई देते हुए नजर आते हैं कि वक़्त से पहले और किस्मत से ज्यादा कभी किसी को नहीं मिलता | डर अति आत्मविश्वास और कमजोर आत्मविश्वास को बहुत जल्दी निशाना बनाते हैं | जिससे या तो हम उन सपनों कि ओर आगे बढ़ते ही नहीं, और अगर बढ़ भी गए तो शुरवाती फेल्यियर में ही कार्य को वहीँ छोड़कर पीछे मुड़ जाते हैं |
उदाहरण के तौर देखें तो सबको पता है कि बच्चा जब चलना सीखता है तो गिरेगा ही, पर माँ – बाप को डर लगा रहता है कि बच्चे को कहीं चोट न लग जाये , जब हम छोटे थे पापा हमको साइकिल चलाना सिखाते थे, तब हम जोर से चिल्लाते थे कि पापा छोड़ना नहीं, हम गिर जायेंगे, हम गिरे भी वैसा ही हम स्विमिंग पुल में तैरना नहीं सीखे हमको पापा ने पास में खड़े होकर तालाब में धकेल दिए, और वहीँ सलाह देते गए हम करते चले गये, तालाब का पानी भी पिया, फिर तैरना भी सिख गए | डर का दम तो देखो जब तक नहीं हुआ रहता, तब तक डर उसके बाद एक खुशी भी आई कि हमने सिख लिया | यहाँ साबित होता है कि सीखना है तो करना पड़ेगा ही |
सबसे बड़ा रोग – क्या कहेंगे लोग वाली डर, जिन्दगी में असफलताओं का डर, सभी डर से बाहर आना पड़ेगा | आज हम भूतकाल कि बात करें तो कई ऐसे कार्य हैं जिसको करने से डरते थे, लेकिन कर गए और आज कई बार उस बात के लिए हंसी भी आती है कि हम क्या सोचते थे | डर का आज के साथ कोई रिश्ता नहीं है, इसको हम खुद बनाते हैं | इससे लड़ने के लिए हिम्मत बनाना पड़ता है, हिम्मत के लिए हमको अपने आराम क्षेत्र से बाहर आना पड़ेगा शुरुवाती समय भले ही बहुत तकलीफ दायक रहेगी, लेकिन भविष्य चमकता सितारा होगा |
हमको डर के प्रति अपनी धारणाएं को बदलना होगा, अगर हमको जीवन में कुछ करना है, तो डर का सामना करना ही पड़ेगा, नहीं करेंगे तो हम भी आम बनकर रह जायेंगे | आप सभी जानते हैं एम. एस. धोनी जो कैप्टन कूल के नाम से भी जाने जाते हैं | डर के लिए कहते हैं “लाइफ में कौन सेट नहीं होना चाहता, मेरी लाइफ भी सेट थी, पक्की नौकरी थी रेल्वे में, लेकिन जब नौकरी छोड़ने कि सोची तो घर वालों ने बोला, कोई सरकारी नौकरी छोड़ता है क्या? इतने बड़े सपने मत देखों मुंह के बल गिरोगे, हाँ उस वक़्त डर तो बहुत लगा, अगर क्रिकेट में करियर न बना और ये नौकरी भी हाथ से गयी तो, और फिर मैंने सोचा ऐसे डर के आखिर कब तक चलेगा | अगर लाइफ में कुछ अलग करना है, तो इस डर का विकेट तो गिरानी ही पड़ेगी, भुला दे डर कुछ अलग कर“
अगर हमको अपने सपनों को पाना है तो डर से लड़ना होगा, आत्मशक्ति बढ़नी होगी, कहना होगा, मैं तैयार हूँ फैल होने से, मैं तैयार हूँ रद्द होने के लिए, मैं तैयार हूँ अपनों के नजरों में गिरने के लिए, मैं तैयार हूँ सारी मुश्किलों का सामना करने के लिए, मैं तैयार हूँ आम से खास बनने के लिए, डर का सामना निडरता से करने के लिए | डर के वजह से हम मानसिक पीड़ा को झेलते हैं, डर से ही तनाव आता है, तनाव से ही शरीर बिमारियों का गढ़ बनता है | डर से भागना नहीं है, इसको भागना है | एक- एक कदम, छोटी – छोटी सफलताएं से हमारा मनोबल बढ़ता है, धीरे – धीरे हम डर पे काबू पाने लगते हैं, यह सोचना हमारा सबसे बड़ा बेवकूफी होता है, कि सही समय आने दो फिर मैं ये डर का सामना करूँगा, क्योंकि सहीं समय और सहीं परिस्थितिया कभी नहीं आने वाली, पहले ही हम चर्चा कर चुके हैं, कि आराम वाली बेड़ियों में जब तक बंधे हैं | तब तक सहीं समय या सहीं परिस्थिति नहीं आती है | सफलता तभी मिलाती है | जब हम शुरुवात करते हैं, शुरुवात में ही गलतियाँ होना स्वाभाविक है | कई बार फैल होने के बाद ही सफलता मिलती है | अभी हम सोच के देखें कि जो काम आज कर रहे हैं | क्या उसके लिए हम कल परफेक्ट थे? अगर हमने आज नहीं किया तो सबसे ज्याद दर्द हमारा अंतिम समय में होगा, सोचते रहेंगे कि हमने अपने लिए तो कभी जिया ही नहीं | अस्तित्व तो था लेकिन उस अस्तिव में हम नहीं थे | सपनो को पाने के लिए हमने कदम उठाया और संभवतः हमारा डर ही विजयी हो, लेकिन जिन्दगी में वो पछतावा तो नहीं रहेगा कि कास मैंने वह कर लिया होता | हार से क्या डरना, जब डर के ही हारना है तो |
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डर को डराना है | Let’s FRIGHTEN the fear4 thoughts on “”
Very nice
thanx
Really nice 👍
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All the Best