आज के समय में शिक्षा (Education) का नाम सुनकर ही समझ आ जाता है कि यह कुछ वर्गों मे का शिक्षा (Education) व्यवसाय बन गया है | पिछले तक़रीबन पंद्रह वर्षों को उठा कर देख ले तो समझ आ जायेगा कि शिक्षा (Education) आज एक कैसा व्यवसाय बन गया है|
जिंदगी और यह संसार के सफ़र में शिक्षा (Education) के बिना कुछ नहीं हो सकता है | इसकी गुणवत्ता सुधारने में बहुत ही बुनियादी बात है कि इसे जब तक हम जिन्दगी से जोड़कर आगे नहीं बढ़ेंगे तब तक बच्चों का मुस्कराना संभव नहीं है |
आज के युग में शिक्षा (Education) देने कि नीति जिस मानसिकता के साथ चल रही है, उसके अनुसार तो तनाव से भरा हुआ ही रहेगा, जैसे जैसे साल गुजरते जायेंगे वैसे – वैसे ही बच्चों के उम्र के साथ कक्षाओं का बढ़ना शिक्षा (Education) प्रदान करना नहीं है | मुझे लगता है कि यह सभी के नजरिये से देखा जाये तो बहुत बड़ा समस्या है |
सरकारों और माता – पिताओं को ध्यान देना चाहिए कि शिक्षा (Education) सबसे पहले तनाव मुक्त होना चाहिए | अभी के दौर में छात्र – छात्राएं अपने शिक्षक तथा माता-पिता के दबाव में विद्यालय जाकर अध्ययन कर रहे हैं जिससे कि अधिकतम बच्चे मनोरोग ( MANOROG ) से गुजर रहे हैं |
सभी बच्चों में लक्षण अलग अलग तरह से दिखाई देता है परन्तु आज के जीवनशैली के कारण माता पिता उन सभी समस्यायों को अनदेखा करते हैं, इसका सबसे बड़ा कारण शायद दिनों दिन होता छोटा परिवार है, मतलब माता पिता और एक या दो बच्चे, पहले परिवार में बच्चों के नजरिये से दादा-दादी, बुआ,चाचा-चाची, ताया-ताई संभवतः और भी बच्चे उनके अलावा आस पड़ोस में भी मेल जोल का होना तब मनोस्थिति कुछ और ही होता था |
अभी शिक्षा (Education) दो तरह के ढांचे में चल रहा है सक्रीय और निष्क्रिय कहने का तात्पर्य है कि आज शिक्षक कक्षा में आता है एक चेप्टर बच्चे और शिक्षक दोनों के द्वारा ही पढ़ा जाता है फिर शिक्षक और छात्रों के बीच आवश्यकता अनुसार प्रश्नोत्तरी होता है |
शिक्षक द्वारा छात्रों को घर के कार्य देते हैं जिसका मतलब आज जो भी विषय पढाया गया उसको ही घर जाकर पुरिक्षण या दोहराना और समझकर कर उस कार्य को पूरा कर दुसरे दिन शिक्षक के सामने प्रस्तुत करना, सभी बच्चों का अपना अपना समझने कि क्षमता होती है यही से मनोरोग (MANOROG) का शुरुवात होता है |
शिक्षा (Education) के उस्ताद होना जरुरी है मतलब स्थितिनुसार शिक्षा (Education) का प्रदान करना मानसिक नजरिया , नैतिक शिक्षा (Education), अध्यात्म और साथ ही साथ विज्ञान कि बाते करे और सिखाये, शिक्षा (Education) का क्रांति और उसका उदय मतलब रुढ़िवादी, कुंठाओं से लड़कर एक नया युग का निर्माण करना ही शिक्षा (Education) क्रांति होगा |
जो भी विषय हैं उनको जीवन से जोड़ना बहुत जरुरी है, हर छात्र – छात्राओं का विकास अवस्था के चार चरण होते हैं शिशु अवस्था (0-2 वर्ष), बाल्यावस्था (03 से 12 वर्ष), किशोरावस्था (13 से 17 वर्ष) और प्रौढ़ावस्था (18-21 वर्ष ) बौद्धिक विकास के अनुशार पाठ्यक्रम को जीवन से जोड़कर बनाया जाना चाहिए और उनको पढ़ाया जाना चाहिए | 03 से 17 उम्र का दौर बहुत ज्यादा महतवपूर्ण होता है|
तनावमुक्त शिक्षा (Education) का होना नितांत आवश्यकता है, जैसे आपने अगर सोनी टी.वी. में एक टेलीकास्ट आता था “कौन बनेगा करोड़पति” उसमे कोई प्रतियोगी चुन के जब हॉट सीट पर आता या आती है तब उस शो के होस्ट श्री अमिताभ बच्चन द्वारा उनको कैसे सामान्य किया जाता है, उस तरह बच्चों के बौद्धिक विकास के अनुसार या वो कौन से दौर से गुजर सकते है सोचते हुए अध्ययन शुरू करने से पहले तनाव मुक्त किया जाना चाहिए | अभी तो ऐसा प्रतीत होता है एक शिक्षक बच्चों के लिए जेलर से कम नहीं है, शिक्षकों का पहचान आज के समय में केवल कठोर व्यक्ति के रूप में है |
बच्चो के जीवन का परिकल्पना (PROJECT) बनाया जाना चाहिए जिससे उनके मनोवाज्ञानिक स्थिति को पहचाना जा सके उनको जीवन जीना सिखाया जाना चाहिए छोटे बच्चों के साथ खेलना, कूदना, संगीत , खेल-खेल में कहानियां, योग तथा वहा के भाषा, संस्कृति और रीती रिवाजो के साथ सिखाएं, बच्चो को अपनी समस्या स्वयं सुलझाने कि कोशिस करने दें |
जब भी छोटा सा भी अच्छा करें तब उनकी प्रशंसा करने से नहीं चुकें तथा किसी भी बच्चे को ये महसूस नहीं होने देना चाहिए कि वह गरीब है, उनको उत्सुक रहने के साथ साथ संघर्ष करते हुए परिशितियों में टकराने की प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि बच्चा दूसरों के ऊपर निर्भर न बन सके|
किशोरावस्था बहुत ही ज्यादा महतवपूर्ण दौर होता है यहाँ पर विद्यालय के शिक्षक से ज्यादा माता पिता का ध्यान देना अत्यंत जरुरी होता है शरीर में महतवपूर्ण बदलाव यही से शुरू होता है, यहाँ पर नैतिक शिक्षा (Education) के साथ साथ यौन शिक्षा (Education) का देना बहुत जरुरी होता है |
जब तक माता पिता बच्चों के साथ उसके मित्र के तरह व्यव्हार कर उनके उज्जवल भविष्य कि ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, यह उम्र जिज्ञासा से भरा होता है, कहते हैं मस्तिस्क का विकास 12 वर्ष के आयु तक ही होता है बाकि समय तो सिर्फ उसका निखार होता है | यह उम्र उस गरम धातु कि तरह है जिसको किसी भी आकार में आप मोड़ सकते हैं |
कहते हैं बच्चे देश का भविष्य होते हैं, लेकिन वे सबसे पहले एक परिवार का सदस्य है और प्रौढ़ावस्था पूर्णतः पिछले बताये हुए तीनों अवस्था पर निर्भर करता है कि उनका भविष्य कहाँ जायेगा, मनोरोग ( MANOROG ) एक ऐसा रोग है कि एक युवा इस अवस्था में आकार कहीं उनके मन में ये न आये कि जिंदगी के यात्रा में चलते हुए यहाँ आकर थक गया हूँ | इसलिए जरुरत है कि “शिक्षा (Education) को जीवन (LIFE) से जोड़ा जाये ताकि आपका बच्चा मुस्कुरा सके”
प्रिय पाठक आपने हमारा लेख पढ़ा, उसके लिए आपको दिल से धन्यवाद् | आपको कैसा लगा फीडबैक निचे दिए गए कमेंट्स सेक्शन में जाकर जरुर देंवे ताकि हमें अपना गुणवत्ता समझने में सहायता हो |
शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव जरुरी | CHANGE IS THE NEED OF THE HOUR IN EDUCATION SYSTEM7 thoughts on “”
Really thought provoking 👍
Thanks
Very good article, Appne jo baat likha hai vah sach hai bachche akele hote ja rhe hai. yeh bahut hi chinta ka vishay hai.
Thanks
Thanks sir to give me great information.
Thanks
Bahut sundar