संन्यास क्या है ? मनुष्य के जीवन को चार आश्रम में बाँटा गया हैं- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम। सन्यास का अर्थ सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर निष्काम भाव से प्रभु का निरन्तर स्मरण करते रहना। शास्त्रों में संन्यास को जीवन की सर्वोच्च अवस्था कहा गया है। संन्यास का व्रत धारण करने वाला संन्यासी कहलाता है।
संन्यासी इस संसार में रहते हुए निर्लिप्त बने रहते हैं, अर्थात् ब्रह्मचिन्तन में लीन रहते हुए भौतिक आवश्यकताओं के प्रति उदासीन रहते हैं। यह वह अर्थ है जो की हमे धर्म ग्रंथों में पड़ने को मिलता है |
संस्कृत में न्यास का अर्थ है शुद्धिकरण, संन्यास का अर्थ है “सभी का शुद्धिकरण”। यह एक संयुक्त शब्द है ‘सं’ – जिसका अर्थ है “एक साथ, सभी”, न- जिसका अर्थ है “नीचे” और ‘यास’- इसका अर्थ है “फेंकना” या “डाल देना”।
इस तरह संन्यास का एक शाब्दिक अनुवाद इस प्रकार है “सब कुछ को नीचे डाल देना” या ‘सभी का शुद्धिकरण’ ।
इस तरह हमे संन्यास शब्द का भावार्थ और शाब्दिक अर्थ दोनों ही समझ में आता है | पर अगर हम गौर से समझे तो यह ज़रूरी नहीं है की संन्यास उसे ही कहा जाए जो अपना घर-परिवार सब कुछ छोड़ कर सिर्फ भगवान् की पूजा-पाठ में लगे रहे दुनिया में ऐसे भी लोग है जो हर अवस्था में सन्यासी का जीवन व्यतीत कर रहे होते है |
संन्यास को जीवन में मार्गदर्शन के रूप में देखना चाहिए ना की उसे किसी धर्म विशेष के साथ जोड़ना चाहिए | मनुष्य की अपनी अंतरात्मा और चेतना इतनी सक्षम है की वो सांसारिक व्यवस्था में रहते हुए संन्यास के भाव को भी अपने जीवन में अपना सकता है | ज़रूरत है तो बस अपने आपके मूल्य को समझने की |
जो लोग संन्यास को अपनाते हैं, वे पाते हैं कि उनकी आंतरिक आवाज उन्हें निर्देशित करती है, और यह कि संन्यास व्यक्तिगत अनुभव से परे मार्गदर्शन और समझ प्रदान करता है। इस अर्थ में, संन्यास व्यक्तिगत विकास और आत्म-समझ का एक साधन है।
संन्यास का अर्थ यह भी है कि संसार की सभी अच्छी और सार्थक चीजों के लिए पहले स्वयं को देखें। सभी चीजें स्वयं के साथ शुरू होती हैं, क्योंकि स्वयं ही वह आधार है जिसके बाद अन्य सभी चीजें शुरू होती हैं।
जब तक हम ख़ुद अपने आपको महत्त्व नहीं देंगे तब तक दुनिया भी हमे वह महत्त्व नहीं देगी | उदाहरण के लिए, यदि कोई मानता है कि सुंदरता एक ऐसी चीज है जिसे केवल दुसरे लोग देख सकते हैं, तो वह अंततः कुछ ऐसा पायेगा जो केवल अन्य लोग देख सकते हैं |
भले ही वो सुन्दर हो या न हो । यदि वे अपनी सुंदरता के लिए पूरी तरह से खुद को महत्व देना शुरू करते हैं, तो उन्हें इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए की दुसरे उनके बारे में क्या राय रख रहे है ।
एक सन्यासी को चाहिए कि अगर किसी चीज़ के बारे में कुछ अच्छा है, अपने आप में या दूसरों में, भले ही कोई और इसे शारीरिक रूप से नहीं देख सकता है, परन्तु उन्हें इसे गहराई से महसूस करना चाहिए।
उन्हें हर बार इस अच्छाई को देखने या अनुभव करने के लिए आभार महसूस करना चाहिए। सन्यासी को अपने आप में कृतज्ञता की भावना विकसित करनी चाहिए ताकि हर बार जब वे किसी भी वस्तु या व्यक्ति विशेष को या फिर आईने में ही क्यूँ न देखें, तो वे उनमें से केवल सबसे अच्छे हिस्सों को देखें।
किसी भी साधारण सी दिखने वाली वस्तु या व्यक्ति का भी बहुत मूल्य होता है ! संन्यास हमे यही सिखाता है की कैसे एक साधारण सी दिखने वाली वस्तु या व्यक्ति का मूल्य समझ सकें | साथ ही यह शक्ति भी प्रदान करता है की अगर कोई अन्य व्यक्ति उस मूल्य को न समझते हुए कोई ग़लत बात या हरकत करे तो उसे संयम में रहते हुए किस प्रकार नज़रंदाज़ किया जाए और साथ ही उस व्यक्ति को किस प्रकार यह समझाया जाये की वह अपने जीवन में ग़लत दिशा में अग्रसर है |
अंत में, संन्यासियों को किसी व्यक्ति को अपने स्वयं के निर्णय लेने में मदद करनी चाहिए, विशेष रूप से वे जो उसके जीवन से संबंधित हैं। यह आवश्यक है कि एक व्यक्ति अच्छा जीवन व्यतीत करने के लिए अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का सम्मान करे।
यह सम्मान एक व्यक्ति द्वारा किए गए प्रत्येक निर्णय में व्यक्त किया जाना चाहिए । संन्यासी वे हैं जो दुनिया को यह सिखाये ! और साथ ही उन्हें बहुत स्पष्ट होना चाहिए कि वे क्या सिखा रहे हैं, और यह सिखने वाले पर कैसे लागू होता है।
एक सन्यासी को अपने जीवन के साथ-साथ दूसरों को भी अपनी देखभाल स्वयं करने में मदद करनी चाहिए, और साथ ही उन्हें अपने जीवन को संरक्षित करने में मदद करनी चाहिए। जब लोगों को संन्यास की यह बुनियादी समझ होगी तभी यह शब्द अपने भावार्थ एवं शबदार्थ दोनों को पूर्ण कर पायेगा |