स्टेटस (रुतबा) का सीधा सम्बन्ध हमारी सोच में होती हैं है मतलब स्पस्ट शब्दों में कहें तो मनोविज्ञान है | जब से हम बड़े हुए हैं तब से एक शब्द है जिसको रोजमर्रा के जीवनयापन में सुनते हैं, वो है आधुनिक समय या आधुनिक भारत, वैसे तो हमारा देश हिंदी भाषी देश है किन्तु इस आधुनिक भारत में जिसको धाराप्रवाह अंग्रेजी (ENGLISH) बोलना आता है उसकी अलग ही पहचान होती है क्योंकि शासकीय क्षेत्रों में भी इनका बेवजह बढ़ावा देना है, भले ही हमारी सरकार साल के एक दिन 14 सितम्बर को बड़े हर्षो उल्ल्लास के साथ हिंदी दिवस मनाया जाता है और उनके विज्ञापनों में भी करोड़ों खरचते हैं लेकिन वाही बात है कि 250 वर्षों से अंग्रेज हमारे देश में राज कर के चले गए लेकिन अंग्रेजी (ENGLISH) भाषा को यही छोड़ गए |
विश्वस्तरीय कार्य करने वालों या अन्य तरह से संपर्क रखने वालों के लिए भले ही अंग्रेजी (ENGLISH) जरुरी है, क्योंकि अंग्रेजी (ENGLISH) ही पुरे विश्व में वार्तालाप माध्यम है | अंग्रेजी (ENGLISH) भाषा का उपयोग करने से हमें कोई बदहजमी नहीं है, लेकिन अंग्रेजी (ENGLISH) भाषा के मामले में हमारे देश के नागरिकों का जानकारी कुछ ही प्रतिशत में सिमटा हुआ है, जिसको सबसे पहले बुनियादी शिक्षा के समय ही सुधार करने कि नितांत आवश्यकता है |
आज का स्थिति ऐसा है कि किसी को धराप्रवाह अंग्रेजी (ENGLISH) बोलते हुए देखते या सुनते हैं तो हम मान लेते हैं, कि यह सभी का जानकर है, अत्यधिक पढ़ा लिखा और संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति है आदि आदि | परेशानी कि बात है कि अंग्रेजी (ENGLISH) हमारे देश में केवल एक भाषा ही नहीं है बल्कि एक समुदाय के रूप में है जो कि अन्य भारतीय भाषा या कहे कि राजकीय भाषा बोलने वालो के बीच बहुत बड़ी विभिन्नता को दर्शाता है | यह सोच पुर्णतः मानसिक सोच से सम्बन्ध रखता है | अगर किसी भी तरह का बैंकिंग सेवा में कोई परेशानी होती है, और वह अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी (ENGLISH) के साथ में लेटर लिखता है तो वहा पर कार्यरत क्लर्क भी उस लेटर में एक नजर डालेगा और ऐसा दिखता है कि उसको सब समझ आ गया है, लेकिन वह इतना चालक होता है कि बातों ही बातों में ग्राहक क्या चाहता है वह समझकर बड़ी आसानी से उसका काम कर देता है | सच मायने में कहे कि यह अंग्रेजी (ENGLISH) भाषा का कमाल नहीं है, बल्कि लोगों का हीनताबोध (Inferiority complex) इसका बड़ा कारण है | लोग बताना ही नहीं चाहते हैं कि उनको अंग्रेजी (ENGLISH) नहीं आती है, यह खुद को नकारात्मकता की ओर ले जाता है |
अंग्रेजी (ENGLISH) का नहीं बोल पाना शतप्रतिशत हीनताबोध (Inferiority complex) को दर्शाता है चाहे वह कोई भी हो, कितनी भी बड़ी बड़ी देशभक्ति कि बात करे, जनसेवा कि बात करे, अपनी संस्कृति और प्रांतीयता को लेकर कितना भी जानकारी रखने वाला घमंड में क्यों न रहता हो, अगर उनको अंग्रेजी (ENGLISH) नहीं आती तो हीनताबोध (Inferiority complex) में जीता है |
मैंने अपने किशोराव्स्ग्था से आज तक एक पुस्तक का नाम बहुत सुना है और बहुतों के घर में देखा है “रैपिड इंग्लिश स्पीकिंग कोर्श” मतलब आप इसी उदहारण से समझ लो कि लोग अंग्रेजी (ENGLISH) से कितने भयभीत है | इनके अलावा कोई भी छोटा से छोटा शहर क्यों न हो गली मोहल्लों में अंग्रेजी (ENGLISH) सिखने और बोलने सिखाने वाले संसथान मिल जायेंगे | जहा पर बेसिक ग्रामर को पढ़ाया जाता है, और वहा प्रशिक्षण लेने वाले लोगों को ग्रामर सिख के ही उतना ख़ुशी मिल जाती है कि हमने कुछ तो सीखा, हाँ लेकिन यहाँ पर ये भी बात है कि कुछ नहीं से कुछ तो सही | कम से कम कुछतो बोला या समझा जा सकेगा |
आखिर कौन है जिम्मेदार “सरकार”?? कौन है इनके दोषी?? इन्टरनेट के माध्यम से मिलने वाली जानकारी विकिपीडिया अंग्रेजी (ENGLISH) को मज़बूरी मानते हैं | प्रत्येक वर्ष संसद में कोई भी महत्वपूर्ण विषय में चर्चा या नियम कानून बनते हैं वह भी अन्य राज भाषाओं को छोड़कर अंग्रेजी (ENGLISH) में ही सभी सांसदों के बीचा बनता जाता है | अंग्रेजी (ENGLISH) भाषा को हमारे देश में इस तरह प्राण प्रतिष्ठाके साथ रखते हैं उसको आप स्वयंविचार करें पढाई कि जाने के बाद जो अंकसूची या प्रमाण पत्र भी अंग्रेजी (ENGLISH) भाषा में प्रदान किया जाता है न कि हिंदी के अलावा कोई अन्य राजकीय भाषा में, चाहे वह प्रायमरी, माध्यमिक, हाईस्कूल या हायर सेकेंडरी स्कूल के द्वारा प्रेषित हो चाहे वो UGC जैसे उच्च शिक्षा के बोर्डों द्वारा प्रदान किया जा रहा हो |
आज देश कि साक्षरता लगभग 75% है, और यही पत्रकारिता के विषय में बात करें तो केवल 5 प्रतिशत ही कर्मी और पाठक उपलब्ध हैं | जो कि सोचने और समझने के लिए मजबूर करता है कि आखिर ये अंग्रेजी (ENGLISH) का होना कितना जरुरी है या नहीं |
प्रिय पाठक आपने हमारा लेख पढ़ा, उसके लिए आपको दिल से धन्यवाद् | आपको कैसा लगा फीडबैक निचे दिए गए कमेंट्स सेक्शन में जाकर जरुर देंवे ताकि हमें अपना गुणवत्ता समझने में सहायता हो |
अंग्रेजी डराती है | English Scares3 thoughts on “”
Good topic
Really we all should think about it.
English should be treated as medium of expression at international platforms and not as compulsion.
thanx
Sahi Hai